आनंद पाने का हमारा स्वभाव था, है, रहेगा। केवल राधा कृष्ण ही आनन्द रूप हैं - उनको ही पाकर आनंद पाया जा सकता है। उनको पाने के लिए और कोई मार्ग नहीं है - नान्यः पन्था। और कोई भी साधना (कर्म, ज्ञान, योग आदि) ऐसी नहीं है जिसके बल पर हम उनको पा सकें। बलहीनेन लभ्या - वो साधनहीन, बलहीन को मिलते हैं। कलियुग में तो कोई साधन बन ही नहीं सकता - एहिं कलिकाल न साधन दूजा। जोग यज्ञ जप तप व्रत पूजा॥
फिर कैसे मिलेंगे वो? बस तीन-चार बातों का ध्यान रखिये -
1. वे सदा हमारे हृदय में रहते हैं। बैठकर साधना करने वाली बात नहीं - चलते-फिरते खाते-पीते, कहीं भी रहते, यह महसूस करो वो हमारे हृदय में हैं। हम अकेले नहीं हैं। हमारे एक-एक संकल्प को नोट करते हैं - यह 'सदा' मानो।
2. एकांत में बैठकर रूपध्यान की साधना करें। सब से पहले मन में रूपध्यान जमाओ - इसमें सबसे बड़ी मेहनत है। रूपध्यान के लिए कुछ लोगों का पूर्व जन्मों का संस्कार होता है। कुछ लोग मूर्ति या फ़ोटो से ध्यान पक्का करते हैं। लेकिन ये सब ठीक नहीं हैं। साधारण लोग हों या बड़े लोग हों, सब को मन से रूपध्यान बनाना चाहिए। मन से रूपध्यान बनाने में दो लाभ हैं - i) हम अपनी इच्छानुसार कोई भी महँगी से महँगी चीज़ से उनका श्रृंगार कर सकते हैं (जैसे कोहिनूर), और ii) कीर्तन एवं पद के अनुसार छोटे या बड़े श्रीकृष्ण या राधारानी का रूप तुरंत बदल सकते हैं।
3. अनन्यता - केवल राधा कृष्ण की ही उपासना करें, केवल अपने गुरु के सिद्धांत का पालन करें। ये शुद्ध हैं, इनसे मन शुद्ध होगा। मन शुद्ध करना ही हमारी ड्यूटी है। बाकी सब काम गुरु करेंगे। जगह-जगह बाबाओं के पास न जाएँ, क्योंकि 99% लोग अज्ञानी हैं और गलत मार्ग बताते हैं। सिद्ध महापुरुषों के यहाँ भी थोड़ा-थोड़ा अंतर है, और कुछ के यहाँ तो बहुत बड़ा अंतर है (जैसे शंकराचार्य के सिद्धांत)।
4. निष्कामता - प्राण निकल रहे हों तो भी माँगना नहीं है। यह सोचो कि अगर उनकी इच्छा है कि मैं ये शरीर छोड़ दूँ, उनकी इच्छा के विरुद्ध सोचना गलत है।
जब ये चार हो जाएँ, तब
5. उनके मिलन की व्याकुलता - बस इस एक चीज़ पर ध्यान दो, बाकी सब छोड़ दो। ये जितनी बढ़ती जाएगी उतना उनके समीप पहुँचते जाओगे। जब उनके दर्शन के बिना रहा न जायेगा तो सब कुछ बन जायेगा। बाकी सारा ज्ञान फ़ेंक दो - वो गुरुओं के लिए आवश्यक है। आप साधक हैं आपको साधना करके अपना काम बनाना है।
अनेक प्रकार की किताबें न पढ़ा करो, न अनेक बाबाओं के प्रवचन सुना करो, न ही मन से इधर उधर की बातें सोचा करो। जल्दी करो, पता नहीं कब ये मानव देह छिन जाये। ये मत सोचो कि अभी तो हम जवान हैं। जैसे कोई लूट होती है तो गुंडे जल्दी जल्दी सामान लूटकर भागते हैं - ऐसे करना है हमको इस मानव देह को पाकर - अगर लापरवाही किया और कमाया नहीं तो यह मानव देह बार बार नहीं मिलेगा। कबहुँक करि करुना नर देहि - मानव देह कल्पों के बाद मिलता है । ये मत सोचिये कि मरने पर फिर से मनुष्य बन जायेंगे। इस शरीर को तो स्वर्ग के देवता चाहते हैं। ऐसे ही नहीं मिल जाता है। कुछ कमा लो तो भगवान् दे देंगे। ज़ीरो रहोगे तो 84 लाख में घूमना होगा। इन सब बातों को मस्तिष्क में रखकर तैयारी कर लो। बहुत लापरवाही कर चुके। अब संभल जाओ।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की कुछ पुस्तकें जो साधना में आने वाली बाधाओं से आपकी रक्षा करेंगी :
प्रेम रस सिद्धांत
उपनिषदों का सार
JKP की लाइव साधना से जुड़ने के लिए यहाँ जाएँ: http://jkp.org.in/live-radio
आनंद पाने का हमारा स्वभाव था, है, रहेगा। केवल राधा कृष्ण ही आनन्द रूप हैं - उनको ही पाकर आनंद पाया जा सकता है। उनको पाने के लिए और कोई मार्ग नहीं है - नान्यः पन्था। और कोई भी साधना (कर्म, ज्ञान, योग आदि) ऐसी नहीं है जिसके बल पर हम उनको पा सकें। बलहीनेन लभ्या - वो साधनहीन, बलहीन को मिलते हैं। कलियुग में तो कोई साधन बन ही नहीं सकता - एहिं कलिकाल न साधन दूजा। जोग यज्ञ जप तप व्रत पूजा॥
फिर कैसे मिलेंगे वो? बस तीन-चार बातों का ध्यान रखिये -
1. वे सदा हमारे हृदय में रहते हैं। बैठकर साधना करने वाली बात नहीं - चलते-फिरते खाते-पीते, कहीं भी रहते, यह महसूस करो वो हमारे हृदय में हैं। हम अकेले नहीं हैं। हमारे एक-एक संकल्प को नोट करते हैं - यह 'सदा' मानो।
2. एकांत में बैठकर रूपध्यान की साधना करें। सब से पहले मन में रूपध्यान जमाओ - इसमें सबसे बड़ी मेहनत है। रूपध्यान के लिए कुछ लोगों का पूर्व जन्मों का संस्कार होता है। कुछ लोग मूर्ति या फ़ोटो से ध्यान पक्का करते हैं। लेकिन ये सब ठीक नहीं हैं। साधारण लोग हों या बड़े लोग हों, सब को मन से रूपध्यान बनाना चाहिए। मन से रूपध्यान बनाने में दो लाभ हैं - i) हम अपनी इच्छानुसार कोई भी महँगी से महँगी चीज़ से उनका श्रृंगार कर सकते हैं (जैसे कोहिनूर), और ii) कीर्तन एवं पद के अनुसार छोटे या बड़े श्रीकृष्ण या राधारानी का रूप तुरंत बदल सकते हैं।
3. अनन्यता - केवल राधा कृष्ण की ही उपासना करें, केवल अपने गुरु के सिद्धांत का पालन करें। ये शुद्ध हैं, इनसे मन शुद्ध होगा। मन शुद्ध करना ही हमारी ड्यूटी है। बाकी सब काम गुरु करेंगे। जगह-जगह बाबाओं के पास न जाएँ, क्योंकि 99% लोग अज्ञानी हैं और गलत मार्ग बताते हैं। सिद्ध महापुरुषों के यहाँ भी थोड़ा-थोड़ा अंतर है, और कुछ के यहाँ तो बहुत बड़ा अंतर है (जैसे शंकराचार्य के सिद्धांत)।
4. निष्कामता - प्राण निकल रहे हों तो भी माँगना नहीं है। यह सोचो कि अगर उनकी इच्छा है कि मैं ये शरीर छोड़ दूँ, उनकी इच्छा के विरुद्ध सोचना गलत है।
जब ये चार हो जाएँ, तब
5. उनके मिलन की व्याकुलता - बस इस एक चीज़ पर ध्यान दो, बाकी सब छोड़ दो। ये जितनी बढ़ती जाएगी उतना उनके समीप पहुँचते जाओगे। जब उनके दर्शन के बिना रहा न जायेगा तो सब कुछ बन जायेगा। बाकी सारा ज्ञान फ़ेंक दो - वो गुरुओं के लिए आवश्यक है। आप साधक हैं आपको साधना करके अपना काम बनाना है।
अनेक प्रकार की किताबें न पढ़ा करो, न अनेक बाबाओं के प्रवचन सुना करो, न ही मन से इधर उधर की बातें सोचा करो। जल्दी करो, पता नहीं कब ये मानव देह छिन जाये। ये मत सोचो कि अभी तो हम जवान हैं। जैसे कोई लूट होती है तो गुंडे जल्दी जल्दी सामान लूटकर भागते हैं - ऐसे करना है हमको इस मानव देह को पाकर - अगर लापरवाही किया और कमाया नहीं तो यह मानव देह बार बार नहीं मिलेगा। कबहुँक करि करुना नर देहि - मानव देह कल्पों के बाद मिलता है । ये मत सोचिये कि मरने पर फिर से मनुष्य बन जायेंगे। इस शरीर को तो स्वर्ग के देवता चाहते हैं। ऐसे ही नहीं मिल जाता है। कुछ कमा लो तो भगवान् दे देंगे। ज़ीरो रहोगे तो 84 लाख में घूमना होगा। इन सब बातों को मस्तिष्क में रखकर तैयारी कर लो। बहुत लापरवाही कर चुके। अब संभल जाओ।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की कुछ पुस्तकें जो साधना में आने वाली बाधाओं से आपकी रक्षा करेंगी :
प्रेम रस सिद्धांत
उपनिषदों का सार
JKP की लाइव साधना से जुड़ने के लिए यहाँ जाएँ: http://jkp.org.in/live-radio
Read Next
Daily Devotion -Apr 18, 2025 (English)
do ko jani bhūlo mana goviṃda rādhe। eka mauta dūjo hari guru ko batā de॥ Always remember two spiritual truths: 1) the unpredictable nature of death and 2) devotion to Hari Guru. The thought of death occasionally crosses our minds when we witness someone passing away. In those moments, we
Daily Devotion -Apr 18, 2025 (Hindi)
दो को जनि भूलो मन गोविंद राधे। एक मौत दूजो हरि गुरु को बता दे॥ दो तत्त्व ज्ञान को सदा याद रखना चाहिये - 1) मृत्यु और 2) हरि गुरु की भक्ति
Daily Devotion -Apr 14, 2025 (English)
From Mind Mess to Divine Rest — Roopdhyan Tips by Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj! Roopdhyan is the primary sadhana, though doing sankirtan along with it is good. However, we face a problem when doing Roopdhyan. In place of God, due to past habits, wherever the mind is more attached, the
Daily Devotion -Apr 14, 2025 (Hindi)
हर राह श्याम तक जाती है — बस मन को सही दिशा दिखानी है! भगवान् का रूपध्यान ही प्रमुख साधना है, उसके साथ संकीर्तन आदि भी अच्छा है। लेकिन रू